त्यौहार के विधि-विधान में उपयोग होने वाली वस्तुएं बाजार में एकाएक उपलब्ध हो जाती है, और एक या दो दिनों के बाद वे वस्तुएं बाजार में दिखाई देना बंद हो जाती है। उदाहरण के लिए हम देखेंगे तो पाएंगे कि ऐसा ही एक तिथि का त्यौहार है हरतालिका तीज, अब यह है तो केवल एक दिन का त्यौहार लेकिन इसे गली-मोहल्ले की महिलाओं द्वारा मनाया जाता है। और इसके कारण स्थानीय बाजार में इससे संबंधित वस्तुएं उपलब्ध हो जाती है। ऐसे तिथि आधारित त्यौहारों की विशेषता यह है कि ये सभी त्यौहार प्राक्रतिक तौर पर उपलब्ध वस्तुओं के साथ ही मनाया जाता है। जिसके कारण बाजार के छोटे से छोटे व्यवसायी को इन त्योहारों का लाभ मिलता है।
भारत में कुछ त्यौहार ऐसे है जिन्हें राष्ट्रीय स्तर पर मनाया जाता है, और हर एक त्यौहार का अपना बाजार है। उन्हीं में से एक 'होली' है, रंगो का त्यौहार होली भारत के प्रत्येक क्षेत्र में मनाया जाता है, होली पर हमें बाजार का एक अलग ही रूप देखने के लिए मिलता है। होली पर नयें कपड़े या सजावट के सामान या अन्य ऐसी कोई वस्तु नहीं खरीदी जाती जिन्हें अन्य त्यौहारों पर अक्सर खरीदा जाता है। बल्कि होली पर तो पुराने से पुराने कपड़ो का उपयोग कर यह संदेश दिया जाता है कि कोई नया हो या पुराना, समय आने पर सभी की अपनी महत्वता होती है।
गरीब हो या सम्पन्न सभी एक ही रंग से होली खेलते है, बच्चे बाजार से पानी की पिचकारी खरीदते है तो परिवार के वरिष्ठ जन एवं माताएं अनेक स्वादिष्ट व्यंजनों को बनाने के लिए बाजार से खरीदी करती है। गली गली में हाथठेला लेकर लोग रंग बेचने निकलते है और होली पर बाजार के अनेखे स्वरूप के दर्शन होते है। इस बार भी होली पर बाजार में अनोखी रोनक रहने वाली है, और हर कोई अपने स्वजनों और मित्रों के साथ रंग खेलने के लिए आतुर है। कही पानी से भरे गुब्बारे चलेंगे तो कही पिचकारी से निशाना बनाया जाएगा, तो कही गुजिया, पपड़ी और मिठाइयों का स्वाद बढ़ेगा तो कही ठण्डाई का आनंद भी लिया जाएगा।
2 Comments
बिल्कुल सही..
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