आत्मनिर्भर भारत की आत्मनिर्भर नारी शक्ति
रोजगार का व्यक्ति के जीवन में अति महत्वपूर्ण स्थान हैं। रोजगार वह संसाधन जिससे व्यक्ति अपने एवं अपने परिवार का पोषण करता हैं। कहि व्यक्ति ठेला चलाता हैं, कहि हल चलाता हैं, कोई बस,ट्रक, मालगाड़ी चलाता हैं, कोई दफ़्तर में बैठकर काम करता, कोई घर घर घर दौड़कर दूध,अखबार, सब्जी बेचता हैं, कोई अध्यापन करवाता हैं, कोई प्रशासन सम्भालता हैं प्रकार कोई भी हो उद्देश्य परिवार का उचित पालन पोषण ही होता हैं।
रोजगार के स्वरूप भिन्न हो सकते हैं, पर उद्देश्य एक ही होता हैं ।
कोई कुशल हैं तो कोई अर्द्धकुशल पर परिश्रम दोनों में निहित हैं चाहे मन का
हो या तन का दोनों ही विधाएँ अपना अपना विशिष्ट महत्व रखती हैं। ऐसे ही भारत को
आत्मनिर्भरता की और अग्रसर करती आजीविका समूहों की नारी शक्ति प्रशंसा की पात्र
हैं। हम बात कर रहें है मध्यप्रदेश दीनदयाल अंत्योदय योजना राज्य ग्रामीण आजीविका
मिशन में अपने आप को स्वयंसिद्धा प्रमाणित करती मातृशक्ति की। छोटे छोटे लघु
उद्योग इकाई से स्वयं रोजगार प्राप्त करती महिलाएं न केवल स्वयं आत्मनिर्भर हैं
अपितु स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी हर बहनों को भी रोजगार दिलवाने का काम कर रही
हैं। १२ से १५ महिलाएं मिलकर एक समूह का निर्माण करती हैं। जिसकी प्रति सप्ताह
बैठक होती हैं । बैठक का उद्देश्य साप्ताहिक बचत एवं ऋण वापसी एवं नया लघु ऋण लेना
होता हैं पर यह पहला पहलू हैं इसके दूसरे पहलू पर हम ध्यान दे तो वह समाज में समरसता, एकजुटता,परसपर सद्भाव तथा
एक दूसरें की ख़ुशी और दुःख को बांटना ही हैं। साप्ताहिक मिलन की बारम्बारता समाज
से क्लेश का विनाश कर आपसी प्रेम सद्भाव को प्रगाढ़ करने में प्रमुख सहायक होती
हैं। समूह की महिलाएं एक दूसरे के क्रियाकलापों की भी चिंता करती हैं तथा रोजगार गतिविधियों का सृजन
भी करती हैं।
छोटे छोटे लघु उद्योग की इकाइयों से वृहद रूप से समूह की सभी महिलाओं को काम मिल पाना सहज ही होता हैं उदाहरणतः हम देखे तो अगरबत्ती निर्माण, फूल बत्ती निर्माण, दुग्ध उत्पादों की लघु इकाई, शासकीय शालाओं हेतु गणवेश निर्माण,मसाला उद्योग, पापड़,चिक्की, सोयाबड़ी, अचार निर्माण,फिनाइल साबुन सोडा निर्माण, रजाई गद्दे निर्माण, हाथकरघा हस्तशिल्प बुनकर इकाई इत्यादि रोजगार उपलब्ध करवाने का प्रमुख साधन ही हैं। यह वह आत्मनिर्भरता के साधन हैं जो प्रायः सभी छोटे से छोटे मोहल्ले से लेकर बड़े से बड़े नगरों में भी विद्यमान हैं। यह ऐसी आत्मनिर्भर भारत की लघु इकाई हैं जिसने मातृशक्ति के साथ साथ समूह की महिलाओं के परिवार को भी सम्मान पूर्वक जीवन यापन के सृदृढ़ साधन उपलब्ध करवाए हैं।
आज के समय मे
जहाँ युवा बड़ी से बड़ी डिग्री प्राप्त कर रोजगार
की संभावना खोज रहें हैं वहीं यह महिलाओं के द्वारा आत्मनिर्भर इकाइयों के
सृजन कर स्वयं आत्मनिर्भर हुई हैं साथ ही औरों को भी सम्मानजनक आजीविका के संसाधन
उपलब्ध करवा रही हैं। यहाँ यह अंतर भी स्पष्ट भी देखने को मिलता हैं कि जहां उच्च
शिक्षा प्राप्त कर युवाओं में रोजगार ढूढ़ने का बहाना हैं तो वहीं इन स्वयं सहायता
समूहों की महिलाओं के पास रोजगार इकाईयों की अपार संभावनाएं हैं।आत्मनिर्भर बनाने
में इन महिलाओं का योगदान वास्तविक रूप में वंदनीय हैं जिसने रोजगार की तलाश के
बहाने को धता बताकर स्वयं रोजगार का सृजन किया है।वर्तमान परिदृश्य में राष्ट्रीय
नीति आत्मनिर्भरता की पर्याय हैं युवाओं में प्रेरणा का स्पंदन कर युवाओं को
प्रेरित करने वाली हैं कि वह स्वयं रोजगार का सृजन करें न कि रोजगार के लिए हाथ
फैलाये।यहाँ युवाओं को रोजगार की परिभाषा को समझने की आवश्यकता हैं कि केवल
प्रसासनिक पद या शासकीय सेवा ही रोजगार नहीं होती वरन लघु रोजगार इकाई स्थापित करना भी आत्मनिर्भर का
उदाहरण हो सकता हैं।
लेखक - मनीष खेड़े
मंडलेश्वर महेश्वर जिला खरगोन मध्यप्रदेश
मोबाइल 9981636361
लेखक मनीष खेड़े गरीबी उन्मूलन तथा आजीविका के संवहनीय संसाधनों एवं रोजगार
कौशल विकास के विशेषज्ञ हैं।
3 Comments
All rights sir ji
ReplyDeleteएक दूसरे की सहायता ही इस दुनिया का मूल मंत्र है।
ReplyDeleteआजीविका मिशन स्वारोजगार का एक शसक्त माध्यम हे।
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