भारत आदिकाल से ही एक जीता जागता राष्ट्रपुरुष है, यह मात्र एक जमीन का टुकड़ा नहीं है। भारत के कंकड़ कंकड़ में शंकर का वास बताया जाता है। हाल ही के कुछ वर्षों में भारत के economic growth में विरासत पर भी पूरा ध्यान दिया जा रहा है और भारत में economic growth के साथ ही cultural development पर भी पर्याप्त ध्यान दिया जा रहा है। जिसके चलते अन्य देशों की तुलना में भारत की economic growth दर मजबूत बनी हुई है। बल्कि अब तो अन्य कई  देश, develop countries सहित, भी अपने आर्थिक एवं सामाजिक समस्याओं के हल हेतु एवं अपने economic growth को गति देने के उद्देश्य से bharatiya culture की ओर आकर्षित हो रहे हैं। 

भारत ने राजनीतिक स्वतंत्रता 75 वर्ष पूर्व ही प्राप्त कर ली थी, परंतु भारत की सनातन संस्कृति आदि काल से चली आ रही है एवं लाखों वर्ष पुरानी है। भारत को ‘सोने की चिड़िया’ के रूप में जाना जाता रहा है और भारतीय सनातन संस्कृति का लोहा पूरे विश्व ने माना है।   धर्म, दर्शन, विरासत, तीज, त्यौहार, जायका और अनेकता में एकता के दर्शन करने को पूरी दुनिया भारत की ओर आकर्षित होती रही है।


Indian Cultural Philosophy and Its Economic Vision


भारत ने राजनीतिक स्वतंत्रता 75 वर्ष पूर्व ही प्राप्त कर ली थी, परंतु भारत की सनातन संस्कृति आदि काल से चली आ रही है एवं लाखों वर्ष पुरानी है। भारत को ‘सोने की चिड़िया’ के रूप में जाना जाता रहा है और भारतीय सनातन संस्कृति का लोहा पूरे विश्व ने माना है।   धर्म, दर्शन, विरासत, तीज, त्यौहार, जायका और अनेकता में एकता के दर्शन करने को पूरी दुनिया भारत की ओर आकर्षित होती रही है। भारत को देव भूमि भी कहा गया है, यह अर्पण की भूमि है, यह तर्पण की भूमि है और यह समर्पण की भूमि है। 


हाल ही के समय में भारत की सांस्कृतिक विरासत को सहेजने, संवारने और उसकी संवृद्धि के लिए विशेष रूप से पिछले दशक के दौरान अथक प्रयास किए गए हैं। हजारों वर्षों की भारतीय सभ्यता और संस्कृति का आकर्षण ही कुछ ऐसा है कि कितने ही झंझावात क्यों न आए परंतु भारतीय सनातन संस्कृति अटूट रही। हालांकि कुछ देशों, जैसे ग्रीक, यूनान, ईरान आदि, की तो सभ्यताएं ही समूल नष्ट हो गईं।  


भारतीय सनातन संस्कृति ने न केवल भारत को एकता के सूत्र में पिरोया है बल्कि पूरे विश्व को ही भारत के साथ जोड़ा है। अब तो भारत में ‘एक भारत - श्रेष्ठ भारत’ के रूप में एक महत्वपूर्ण अध्याय लिखा जा रहा है। भारत ने G20 समूह के देशों की अपनी अध्यक्षता के दौरान कई अतुलनीय कार्य किए है। पिछले लगभग एक वर्ष के अपने अध्यक्षीय कार्यकाल में विभिन्न महत्वपूर्ण विषयों पर सदस्य देशों की 200 से अधिक बैठकों का भारत के विभिन्न शहरों में आयोजन कर भारत ने पूरी दुनिया के समस्त देशों को चौंका दिया है। इस दौरान, भारत ने पूरी दुनिया को ही अपनी महान गौरवशाली सनातन संस्कृति, वैभवशाली विरासत, आध्यात्मिक क्षेत्र, Economic Growth, आदि का परिचय देने में सफलता हासिल की है।


भारत ने हाल ही के वर्षों में अपनी आर्थिक एवं सामाजिक समस्याओं को हल करने एवं अपनी economic growth rate को तेज करने में जो सफलता पाई है वह मुख्य रूप से भारत की सनातन संस्कृति एवं परंपराओं का पालन करते हुए ही प्राप्त की जा सकी है। इसके ठीक विपरीत विशेष रूप से कोरोना महामारी के बाद से विश्व के कई विकसित देश अभी तक कई प्रकार की आर्थिक एवं सामाजिक समस्याओं से जूझ रहे हैं। पूंजीवाद पर आधारित economic policies के पालन से पश्चिमी देशों की आर्थिक एवं सामाजिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं रही है। विकसित देशों में आज परिवार की प्रधानता एक तरह से समाप्त हो चुकी है। इस संदर्भ में यहां विशेष रूप से अमेरिका की स्थिति का उदाहरण दिया जा सकता है। अमेरिका में आज सामाजिक ताना बाना छिन्न भिन्न हो चुका है। दंपतियों में तलाक की दर बहुत अधिक हो गई है जिसके चलते बच्चे केवल अपनी मां के पास रह जाते हैं एवं बड़ी संख्या में बच्चों को अपने पिता के बारे में जानकारी ही नहीं है।


अमेरिका में प्रत्येक 100 नागरिकों पर बंदूकों के 120 लाइसेंस जारी किए गए हैं, अर्थात कुछ नागरिकों के पास एक से अधिक बंदूक उपलब्ध है। बंदूक की सहज उपलब्धता के कारण आज अमेरिका में हिंसा की दर बहुत अधिक हो गई है। अमेरिका में प्रति एक लाख की जनसंख्या पर पुलिस के 978 कर्मचारी तैनात है। इसके बावजूद, वर्ष 2020 में अमेरिका में मास शूटिंग (जिसमें 4 अथवा इससे अधिक नागरिकों की मृत्यु हो गई थी) की 610 घटनाएं हुईं। वर्ष 2021 में 690, वर्ष 2022 में 647 एवं इस वर्ष 9 मई 2023 तक 203 मास शूटिंग की घटनाएं हो चुकी हैं। वर्ष 2017 में जारी की गई एक रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका में प्रति एक लाख की जनसंख्या पर 17.2 हत्या की घटनाएं हुईं थी, जबकि अफ्रीका में 13, एशिया में 2.6 एवं पूरे विश्व में औसत 6 हत्या की घटनाएं हुईं थी।

   

Developed Countries में पारिवारिक व्यवस्था के छिन्न भिन्न होने के कारण बुजुर्गों को सरकार की मदद पर निर्भर रहना होता है। अतः इन देशों की सरकारों को सामाजिक सुविधाओं पर भारी भरकम राशि खर्च करनी होती है। कई विकसित देशों में तो बुजुर्गों की संख्या में तेजी से वृद्धि हो रही है जिसके चलते इन देशों को अपने बजट का बहुत बड़ा भाग सामाजिक सुविधाओं पर खर्च करना पड़ रहा है। फ्रान्स अपने कुल बजट का 31 प्रतिशत हिस्सा सामाजिक सुविधाओं पर खर्च कर रहा है, इसी प्रकार इटली 28 प्रतिशत, जर्मनी 26 प्रतिशत एवं अमेरिका 19 प्रतिशत हिस्सा सामाजिक सुविधाओं पर खर्च कर रहा है। सामाजिक सुविधाओं पर भारी भरकम खर्च के कारण इन देशों की आर्थिक स्थिति चरमरा गई है एवं इन देशों में प्रति व्यक्ति औसत ऋण बहुत अधिक हो गए हैं। अमेरिका में तो कुल सकल घरेलू उत्पाद का 136 प्रतिशत कर्ज लिया जा चुका है। आज ऋण पर ब्याज के भुगतान हेतु भी कुछ देशों को कर्ज लेना पड़ता है।


अमेरिका में विश्व की लगभग 4 प्रतिशत जनसंख्या निवास करती हैं परंतु पूरे विश्व में उत्पादित की जा रही बिजली के लगभग 30 प्रतिशत भाग का उपयोग अमेरिकी नागरिकों द्वारा किया जा रहा है। इसी प्रकार पूरे विश्व के पेट्रोल एवं डीजल के 36 प्रतिशत भाग का उपयोग अमेरिका में होता है। इस प्रकार पूरे विश्व के पर्यावरण को विकसित देश विपरीत रूप से प्रभावित कर रहे हैं। उक्त वर्णित कारणों से अमेरिका का बजटीय घाटा भी बहुत दयनीय स्थिति में पहुंच गया है। साथ ही निर्यात की तुलना में आयात बहुत अधिक हो गया है, इससे कुल विदेशी व्यापार भी ऋणात्मणक हो गया है। अतः कुल मिलाकर पूंजीवाद पर आधारित पश्चिमी आर्थिक दर्शन पूर्णतया असफल हो चुका है।


पश्चिमी दर्शन की विचारधारा के ठीक विपरीत, भारतीय संस्कृति के अनुसार, व्यक्तिवाद के ऊपर परिवार, समाज, राष्ट्र, सृष्टि एवं परमेष्ठी को क्रमशः माना गया है। संयुक्त परिवार के प्रचलन के कारण बुजुर्गों की देखभाल परिवार में ही होती है एवं सरकार के बजट पर इस संदर्भ में बहुत अधिक बोझ नहीं आता है। भारतीय सनातन संस्कृति का पालन करते हुए भारत के आर्थिक विकास को देखकर अब विकसित देश भी भारतीय संस्कृति को श्रेष्ठ मानते हुए इसकी ओर आकर्षित हो रहे हैं ताकि वे अपनी आर्थिक एवं सामाजिक समस्याओं को हल कर सकें। कुल मिलाकर अब भारतीय आर्थिक दर्शन ही पूरे विश्व को बचा सकता है, क्योंकि वह कर्म आधारित है और एकात्म मानवता पर केंद्रित है। 


लेखक - प्रह्लाद जी सबनानी, ग्वालियर,