Malwa Ki Lok Paramapara Aur Utsav
भारत को देखने पर हमे समाज के वर्गों में भिन्नता भले ही दिखाई देती है किन्तु भारत प्रारंभ से सांस्कृतिक रूप से एक है। भारत की सांस्कृतिक एकरूपता ही प्रारंभ से वर्तमान तक भारत को भारत बनाए हुए है। भारत की इसी भिन्नता में एकरूपता का दर्शन हमें गांवों और कस्बों में भी देखने के लिए मिलता है।
भारत में प्रभु श्रीराम सम्पूर्ण भारत की एकरूपता का प्रतीक है, उसी प्रकार भारत के गांवो और कस्बों को क्षेत्रीय रूप से एकत्रित करने का काम वहां के स्थानीय लोक देवता और स्थानीय Lok Sanskriti और Lok Paramapara ने किया है।
भारत के प्रत्येक क्षेत्र में कुछ ऐसे विशेष प्रतिभाशाली लोग हुए है। जिन्हें उनके जीवन में प्राप्त उपलब्धियों और उनके द्वारा किया परमार्थ के कार्यों कारण स्थानीय स्तर पर देवता के समान माना जाने लगा तथा समय के साथ उनको पूजा जाने लगा। ऐसे ही एक लोक देवता जिन्हें प्रादेशिक सीमा से परे जाकर आज भी पूजा जाता है।
उनको मानने वाले पूजने वालें लोग आज भी उनका सम्मान और आराधना उसी प्रकार कर रहे है जिस प्रकार वर्षों पूर्व किया करते थे। 'बाबा रामदेव' या कहें कि 'रामदेवरा जी महाराज'। Baba Ramdev जी का जन्म राजस्थान राज्य के जैसलमेर की पोखरण तहसील में हुआ था। Ramdevara Ji Maharaj की ख्याति जगत विख्यात है। मालवा के भीतर भी रामदेवरा जी महाराज को पूजा जाता है।
इसी प्रकार malwa में गोगादेव जी महाराज का lok parampara में एक विशेष नाम है। गोगादेव जी महाराज को भी लोकदेवता के रूप में पूजा जाता है। गोगादेव जी महाराज का जन्म भी राजस्थान राज्य में ही हुआ था। हनुमानगढ़ की भादरा तहसील में गोगादेव जी महाराज का जन्म हुआ था।
गोगादेव जी महाराज गोरक्षनाथ जी के प्रमुख शिष्यों में एक थे। इनके अलावा खरनाल के राजा तेजाजी महाराज भी lok devata के रूप में पूजे जाते है। राजस्थान और मध्यप्रदेश के malwa में तेजाजी महाराज को पूजा जाता है।
इसी प्रकार टांट्या मामा जो एक क्रांतिकारी थे और अंग्रेजों के विरूद्ध लम्बा युद्ध किया। उनकी वीरता, शौर्य न्यायप्रियता के लिए वहां के स्थानीय लोग उन्हें lok devata के रूप में पूजते है। वर्तमान में टांट्या मामा के जीवन से हम सभी प्रेरणा भी लेते है। इनके अलावा भीमा नायक भी एक क्रांतिकारी थे जिन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध कड़ा संघर्ष किया था और उन्हें भी वहां के स्थानीय लोग लोकदेवता के रूप में पूजते है। भीमा नायक का जन्म इंदौर के पास बड़वानी में हुआ था। भारत मे सभी lok devatao को सभी वर्गो के द्वारा समानरूप से पूजा है।
Lok Devata के साथ ही lok parampara का भी विशेष महत्व है। कुछ lok parampara का निर्माण lok devata की आराधना के लिए हुआ है, तो कुछ lok parampara समाज को संगठित करने एवं समाज को मार्गदर्शित करने के उद्देश्य से प्रारंभ हुई है। गीत से लेकर कविताएं एवं नाटको से लेकर चित्रकला तक सभी कुछ lok param का हिस्सा है।
लोक परम्पराओं और उत्सवों के द्वारा स्थानीय अर्थतंत्र भी मजबूत होता आया है। किसी भी लोक उत्सव एवं उन उत्सवों को मनाने की तैयारी हेतु लगने वाले हाट बाजार और मेले स्थानीय अर्थतंत्र को गति प्रदान करते है। वर्षा ऋतु में जब अंतर्देशीय वस्तु विनिमय बारिश के कारण स्थगित हो जाता है, तब स्थानीय मुद्रा परिचालन के लिए स्थानीय अर्थतंत्र एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और lok parampara एवं लोक उत्सव विनिमय को गति देने के साथ सुदृढ़ भी बनाते है। लोकल वस्तुओं का बाजार तेज हो जाता है एवं मुद्रा परिचालन गति में निरंतरता बनी रहती है।
लोक देवताओं को सम्मान देने के लिए एवं उनके प्रति अपनी निष्ठा को दर्शाने के लिए सभी वर्गों के द्वारा विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों को आयोजित किया जाता है, जिनकी तैयारी आदि सभी कुछ स्थानीय स्तर पर ही की जाती है। इसी प्रकार लोक उत्सव एवं उन पर लगने वाले मेले भी स्थानीय अर्थतंत्र को चलायमान रखते है।
गोगा महाराज की छड़ी यात्रा हो या तेजाजी महाराज की छत्री यात्रा हो या रामदेवरा जी की वार्षिक यात्रा हो यह सभी यात्राओं की समयावधि होती है एवं यात्रा की पूर्णाहुति पर मेले, शोभा यात्रा आदि अनेक कार्यक्रमों का आयोजन होता है। जो स्थानीय लोगो को रोजगार भी प्रदान करता है।
श्रावमास में उज्जैन के Mahakaleshwar Jyotirlinga की भी स्थानीय आधार पर विशेषता है। श्रावमास के प्रत्येक सोमवार और भाद्रपद के कृष्णपक्ष की अमावस्या तक के सभी सोमवार को बाबा Mahakal की पालकी, सवारी के रूप में नगर भ्रमण के लिए निकलती है। जिसे देखने के लिए स्थानीय एवं बाहरी सभी उत्सुक होते है।
जो बाहरी दर्शनार्थी आते है वे यहा आकर खर्च भी करते है तथा स्थानीय लोग भी खरीदारी आदि सभी करते है। Mahakaleshwar Jyotirlinga का सवारी उत्सव भी स्थानीय उत्सव है। इसी के साथ उज्जैन परिक्षेत्र में 84 महादेव की यात्रा एवं गणेशोत्सव में षष्ठ गणपति यात्रा भी स्थानीय रोजगार को बढ़ावा देते है।
इसके अतिरिक्त मालवा क्षेत्र में ही उज्जैन एवं इंदौर में गणेशोत्सव के समय भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को फूलडोल उत्सव का आयोजन भी होता है। जिसके अंतर्गत झाकियां एवं अखाड़े आदि सम्मिलित किए जाते है तथा शोभायात्रा निकाली जाती है जिसे देखने के लिए नगर के लोग एकत्रित होते है जिसके कारण बाजार में मेले सा वातावरण रहता है।
भारत में उत्सव परंपरा सांस्कृतिक एकरूपता के साथ साथ रोजगार उन्मुख भी है। भारत में उत्सवों के समय पर अर्थतंत्र भी बड़ी तेजी से काम करता है। उत्सव परंपरा के साथ ही स्थानीय अर्थतंत्र की सुदृढ़ता के लिए स्थानीय उत्सव भी उतने ही आवश्यक है, जितने की राष्ट्रीय उत्सव।
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