परिवार का परस्पर संवाद सामाजिकता का आधार
'रक्षाबंधन के अवसर पर सभी को शुभकामनाएं',
भारत उत्सवों का भी देश है यदि पंचाग पर दृष्टि दौड़ाई जाए तो प्रतिदिन एक विशेष उत्सव अवश्य ही देखनें के लिए मिल सकता है और भारत के किसी ना किसी एक भाग में प्रत्येक दिन उत्सवों को मनाया जाता है।
इन्हीं उत्सवों मे कुछ मुख्य उत्सव है जिन्हें सम्पूर्ण परिवार के साथ मनाया जाता है, परिवार के प्रत्येक सदस्य की सहभागिता महत्वपूर्ण होती है, भारत में परिवार संस्था को स्वीकार किया गया है और परिवार केवल माता-पिता और बच्चों का ही नहीं वरन उसमें दादा-दादी, चाचा-चाची, भैया-भाभी, छोटे भाई-बहन इसके अतिरिक्त नाना-नानी, मामा-मामी, बुआ, मौसी आदि सदस्य जो.एक ही स्थान पर सपरिवार निवासरत रहते हुए आपसी सहयोग से जीवन यापन करते हुए समाज का प्रतिनिधित्व भी करते है और परिवार के प्रत्येक सदस्य की अपनी जिम्मेदारी भी होती है, जब भी किसी प्रकार का नया कार्य हो या कोई विपत्ति हो तो परिवार में आपसी सहमति से कार्य को सम्पन्न किया जाता है।
परन्तु समय के परिवर्तन तथा आधुनिकता के युग में परिवार संस्था का हनन होता जा रहा है, स्वार्थवश अहंकार और सम्पूर्ण भौतिकवादी आनंद की लालसा ने हमें परिवार के साथ-साथ स्वयं से भी दूर कर दिया है। आधुनिकता के नाम पर भौतिक आनंद की लालसा में जिम्मेदारी लेने से पीछे हटते है, बड़े शहरों में परिवार का विघटन यहां तक बढ़ गया है कि अब केवल पति-पत्नी ही परिवार हो रहे है तथा काम की अधिकता और समय की कमी के नाम पर परिवार की जिम्मेदारी से भागने का काम किया जा रहा है।
परिवार मे आपसी संवाद भी समय के साथ गौण होता जा रहा है, जिससे आने वाली पीढी को सही-गलत में अंतर की जानकारी परिवार से ही मिलती है, पारिवारिक संवाद से ही समाज में फैली कुरीतियों को दूर किया जा सकता है। परिवार के उम्रदराज सदस्यों की जिम्मेदारी है कि अगली पीढ़ी को सही-गलत की जानकारी दी जाए। इस रक्षाबंधन हमें एक संकल्प अवश्य करना चाहिए कि आधुनिक और समय की बलिहारी के कारण भले ही परिवार को अलग अलग रहना पड़ रहा हो किन्तु कम से कम महिने में एक या दो बार परिवार के सभी सदस्य एक साथ एक या दो दिन के लिए साथ जरूर रहें। ताकि नयी पीढ़ी को परिवार की महत्ता का अनुभव हो सके और परस्पर रिश्तों में सकारात्मक आए।
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