‘मालवा और महाशिवरात्री उत्सव’
प्रति वर्ष फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्री मनाई जाती है। भारतीय सांस्कृतिक परमपराओ में और उत्सवो में शिवरात्री का विशेष महत्व है। जैसा की इसके नाम से ही स्पष्ट है की महाशिवरात्री का त्योहार भगवान भोलेनाथ से जुड़ा हुआ है। पौराणिक कथाओ एवं मान्यताओ में इस दिन की अनेक महत्व और कथाए विद्यमान है।
महाशिवरात्री क्यो मनाई जाती है? :- फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी महाशिवरात्री मनाई जाती है। इस दिन भगवान भोलेनाथ से जुड़ी अनेक कथाए मिलती है जिनमे से कुछ मुख्य कथाओ को बताने का प्रयास किया जा रहा है। एक कथा के अनुसार सृष्टि के आरंभ के समय ब्रह्माजी और भगवान विष्णुजी के मध्य श्रेष्ठता को लेकर ठन गयी। जिसके पश्चात एक अग्नि स्तंभ प्रकट हुआ और आकाशवाणी हुई कि जो भी इस स्तंभ के आदि और अंत को जान लेगा वह श्रेष्ठ माना जाएगा। सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा और जगत के पालनहार विष्णु के द्वारा युगों तक इस स्तंभ के आदि और अंत को जानने का प्रयास किया, लेकिन नहीं जान सके और भगवान विष्णु भगवान अग्नि स्तंभ के रहस्य को जानने के लिए उसकी शरण में चले गए। तब भगवान शिव ने कहा कि श्रेष्ठ तो आप दोनों ही हैं, लेकिन मैं आदि और अंत से परे परबह्म हूं. इसके बाद विष्णु भगवान और ब्रह्मा जी ने उस अग्नि स्तंभ की पूजा अर्चना की और वो स्तंभ एक दिव्य ज्योतिर्लिंग में बदल गया। जिस दिन ये घटना घटी, उस दिन फाल्गुन मास की चतुर्दशी थी। भगवान शिव ने कहा कि इस दिन जो भी मेरा व्रत व पूजन करेगा, उसके सभी कष्ट दूर होंगे और मनोकामनाएं पूरी होंगी. तब से इस दिन को महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाने लगा.
इसी प्रकार अनुसार शिवपुराण के अनुसार इसी दिन भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती का विवाह भी हुआ था। जो की सबसे प्रचलित मान्यतों में से एक है। आज के दिन सभी शिव मंदिरो में भक्तो का आना जाना लगा रेहता है और शाम के समय मंदिरो में शिवलिंग का शृंगार आदि किया जाता है।
मालवा मुख्य शिव मंदिर और शिवरात्री का उत्सव :- उज्जैन और इंदौर संभाग एवं उसके आस का क्षेत्र मालवा कहलाता है। जिसे मालवा के पठार के नाम से भी जाना जाता जय। मालवा का क्षेत्र मुख्यरूप से शेव परंपराओ को मानने वाला क्षेत्र है। जिसके कारण यहा शिव मंदिरो की संख्या अधिक है। भारत में भगवान भोलेनाथ के 12 ज्योतिर्लिंगो स्थित है। जिनमे उज्जैन के श्री Mahakaleshwar Jyotirling और इंदौर के पास ओंकारेश्वर में श्री ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में मुख्य दो ज्योतिर्लिंग स्थित है।
वेदो और शास्त्रो में उज्जैन को ब्रह्मांड का केंद्र माना गया है। समय की गणना का केंद्र भी उज्जैन को ही बताया गया है। उज्जैन के Mahakaleshwar Jyotirling मंदिर में महाशिवरात्री का भव्य आयोजन होता है। जिसमे सम्पूर्ण देश के भक्त यहा भगवान के दर्शन के लिए आते है। उज्जैन में ही मंगलनाथ महादेव मंदिर और अंगारेश्वर महादेव मंदिर भी स्थित है। मंगलनाथ मंदिर का भी अपना विशेष महत्व है। मंगल नाथ मंदिर से कर्क रेखा गुजरती है। यहा दूर दूर से लोग विशेष भात पुजा के लिए आते है।
उज्जैन के पास ही अगर मालवा जिले में श्री बेजनाथ महादेव मंदिर स्थित है। इसके अतिरिक्त रतलाम के पास बिलपाक गाँव में बिलकेशवर महादेव मंदिर स्थित है। महाशिवरात्री के दिन इस मंदिर में विशेष यज्ञ का विधान है जिसके प्रसाद के रूप में खीर दी जाती जाती है। यहा एक मान्यता यह भी है की जिन महिलाओ को संतान की प्राप्ति नहीं हो पति है वे महिलाए महाशिवरात्रि के दिन मंदिर में दर्शन के बाद खीर का प्रसाद लेकर जाती है और इसके बाद प्राप्त संतानों को मंदिर में दर्शन के लिए लाया जाता है।
इंदौर के पास ओंकारेश्वर में माँ नर्मदा के किनारे पर ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थित है। शास्त्रो के अनुसार ओंकारेश्वर में ही ओंकार पर्वत पर आदि गुरु शंकराचार्य को ज्ञान और सिद्धि प्राप्त हुयी थी। ओंकारेश्वर, महेश्वर और मंडलेश्वर और उसके आस-पास का क्षेत्र माँ नर्मदा से सु-सज्जित है। प्रति वर्ष इस क्षेत्र में माँ नर्मदा परिक्रमा की पंचकोसी यात्रा होती है। ओंकारेशर और उसके आस पास के क्षेत्री में भी महाशिवरात्रि को पूरे उत्साह के साथ मनाया जाता है।
महाशिवरात्रि का उत्सव सम्पूर्ण भारत में मनाया जाता है यह उत्सव पूरे भारत को एक सूत्र में पिरोने का काम करता है। महाशिवरात्रि भी भारतीय सांस्कृतिक परंपरा का राष्ट्रिय उत्सव है। जो भारत के सभी वर्गो को जोड़ने का काम करता है।
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