Ever Changing War Narratives


लगातार बदलते युद्ध के स्वरुप को पहचाने कैसे?


एक समय था जब युद्ध राज्य की सीमा पर योद्धाओ के द्वारा लड़े जाते थे। राज्य की सैन्य शक्ति बाकि प्रजा की रक्षा के लिए राज्य सीमा पर जाकर युद्ध किया करती थी। समय बीतने के साथ ही परिवर्तन होता ही हैं और यह परिवर्तन युद्ध में भी देखा जाने लगा। जहा पूर्व के समय में बाहुबल से विजय प्राप्त की जाती थी, वही षडयंत्रो के द्वारा युक्ति कर युद्ध होना प्रारम्भ हो गए। ऐसे युद्ध में राज्य की सत्ता, शासन-प्रशासन पर निर्भर होने लगी। गुप्तचर प्रणाली का बड़े पैमाने पर विस्तार होने लगा। 


जहा पहले युद्ध रणभूमि में लडे जा रहे थे, वही अब युद्ध सूचनाओं के आधार पर शुरू हो चुके थे। सूचनाओं के आधार पर युद्ध के साथ ही युद्ध का एक भिन्न प्रकार देखने के लिए मिला और वह था किसी भी राज्य के बाजार पर नियंत्रण करने के बाद राज्य को अधीन करना। अधीन राज्य पर जबरदस्ती के नियमो को कानूनों का रूप देकर जनसामान्य को प्रताड़ित करना और राज्य में लूट खसोट करना। 


समय के आगे बढ़ने के साथ ही युद्ध के स्वरुप और स्पष्ट हुए और युद्ध सुचना क्रांति में बदल गए। इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी के नाम पर सक्षम राज्यों द्वारा कमजोर राज्यों पर तकनिकी अधिग्रहण करने का अकूट प्रयास किया। एक छोटी सी सुई से लेकर बड़ी से बड़ी तकनीक सहायता के लिए राज्य के भीतर अधिग्रहण की योजना बनने लगी। 


जो युद्ध कभी राज्य की सीमा पर हुआ करते थे। वही युद्ध राज्य के भीतर होने शुरू हो चुके, वो भी बिना राज्य के भीतर प्रवेश करे। कभी समय था, जब युद्ध बाहरी शक्तियों से किये जाते थे, किन्तु अब भीतर घातिओ से राज्य के भीतर युद्ध लड़ने पर मजबूर होना पड़ रहा हैं। राज्य की सीमा पर छद्म युद्ध भी लडे जा रहे हैं।  


इसका सबसे प्रमुख उदाहरण वर्तमान में हम बांग्लादेश में हुए सत्ता परिवर्तन और उसके बाद वह के अल्पसंख्यक हिन्दू सहित अन्य धर्मो के लोगो पर हुए अत्याचार और अनाचार के रूप में देख सकते हैं। किस प्रकार से विदेशी बलात शक्तियों के द्वारा बांग्लादेश में लोकत्रांत्रिक तरीके से चुनी हुयी सरकार को समाप्त कर छद्म रूप से एक कठपुतली मुखिया को बैठाकर पुरे देश को अधिग्रहित करने का प्रयास किया जा रहा हैं। 


पिछले कुछ वर्षो में भारत के आसपास के देशो में इस प्रकार की घटनाये लगातार देखने के लिए मिल रही हैं। भारत के पूर्व CDS स्व. जनरल विपिन रावत ने अपने एक भाषण में कहा था कि भारत को ढाई मोर्चे पर लड़ने की आवश्यकता होगी। उनका कहने अर्थ यही था कि युद्ध के लगातार बदलते स्वरुप को समय रहते जानकार, उससे निपटने के लिए हमेशा तैया रहना होगा। 


भारत ने युद्ध का हर काल देखा हैं या हम यह कह सकते हैं कि युद्ध की हर शैली भारत में ही जन्मी हैं। समय के साथ भारत सभी युद्धों पर विजय प्राप्त करते हुए निरंतर आगे बढ़ रहा है। किन्तु भारत हमेशा से युद्ध में था और आगे भी रहेगा क्योकि भारत युद्ध को सहन नहीं करता बल्कि उसका प्रतिकार कर विजय होने सामर्थ्य भी रखता हैं। 


भारत की यही सामर्थ्यता विश्व की अन्य बलात शक्तियों को खटकती हैं। भारत की सरकारी और खाली पड़ी जमीनों पर मजहब के नाम पर अवैध कब्ज़ा और पिछले कुछ माह में हुयी आतंकी घटना से लेकर लगातार भारतीय रेल नेटवर्क पर हो रहे षड्यंत्रकारी कृत्य यह संकेत कर रहे हैं कि भारत को पुनः प्रतिकार करने की आवश्यकता का आभास हो रहा हैं।